दिलों से खेलने का हुनर हमे नही आता,
इसीलिए इश्क की बाज़ी हम हार गए
मेरी ज़िन्दगी से शायद उन्हें बहुत प्यार था
इसीलिए मुझे जिंदा ही मार गए....
सारी उमर आँखों में एक सपना याद रहा,
सदियाँ बीत गई जिसमे वो लम्हा याद रहा,
न जाने क्या बात थी उनमे,
सारी महफिल भूल गए बस वो ही एक चहरा याद रहा...
बन के एहसास मेरी धड़कन के पास रहते हो,
तस्वीर बन के मेरी आँखों के पास रहते हो,
आज पूछते है एक सवाल तुमसे,
क्या दूर रह कर तुम भी उदास रहते हो???
कोई कुछ भी न कहे तो पता क्या है
इस बेचैन खामोशी की वजह क्या है
की
2 comments:
दिलों से खेलने का हुनर हमे नही आता,
इसीलिए इश्क की बाज़ी हम हार
bahut sunder
सुन्दर रचना है।
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