हो कर बेगाने भी क्यों अपने से लगते हो
हो इतनी दूर फिर भी क्यों करीब लगते हो
छोड़ देंगे तेरी यादों को कहीं दूर
रिस रिस कर रोज यूं तड़पाते क्यों हो
दिल के झरोखों में इक तस्वीर है तेरी
धुंधली है सही फिर भी आँखों में बसते क्यों हो
कोई छेड़े जो ज़िक्र तेरा तो होंठ फर्फराते हैं
आह निकले न कहीं बस आंसू बन ढल जाते हैं
मुददत से नही हुई कोई बात तो क्या
सपनो में अक्सर बातें करते क्यों हो
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