Tuesday, September 2, 2008

जिक्र जो तेरा


हो कर बेगाने भी क्यों अपने से लगते हो

हो इतनी दूर फिर भी क्यों करीब लगते हो


छोड़ देंगे तेरी यादों को कहीं दूर

रिस रिस कर रोज यूं तड़पाते क्यों हो


दिल के झरोखों में इक तस्वीर है तेरी

धुंधली है सही फिर भी आँखों में बसते क्यों हो


कोई छेड़े जो ज़िक्र तेरा तो होंठ फर्फराते हैं

आह निकले न कहीं बस आंसू बन ढल जाते हैं


मुददत से नही हुई कोई बात तो क्या

सपनो में अक्सर बातें करते क्यों हो

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