Monday, November 3, 2008


आज हमने भी ग़मों को छुपाना सिख लिया ,
भरी महफ़िल में मुस्कुराना सिख लिया,
हम तो डरते थे ग़मों का जहर पीने से,
पर अब तो ग़मों को जाम समजकर पीना सिख लिया,
पहले तो अकेले से होते थे भीड़ में,
पर अब तो तन्हाई में भी रहना सिख लिया
लोग तो मुस्कुरा कर दे जाते थे दोखा,
पर अब तो हमने आंखों को पड़ना सिख लिया,
कोई सुनता ही न था हमारे दिल की आवाज़ को ,
तो हमने उस आवाज़ को शायरी में बदलना सिख लिया