Monday, January 5, 2009

टुटा हुआ इन्सान




इस बेरंग वीरान सी दुनिया की पहचान हूँ मैं,
तुम्हारे ख्वाबों की दुनिया से अब एक अनजान हूँ मैं


कभी कहा करती थी की मेरी दुनिया हो तुम,
आज उजड़ी हुई बस्ती की पहचान हूँ मैं

कभी होठो पर कभी आखों पर सजाया करती थी,
आज मुरझाई कली की पहचान हूँ मैं

कभी अपने दिल मे बसाया करती थी,
आज एक टुटा हुआ एक मकान हूँ मैं

कभी सबको हंसाया करता था मैं,
आज एक टुटा हुआ इंसान हूँ मैं............................

No comments: