बचपन के दुःख के दिन कितने अच्छे थे ,
तब तो सिर्फ़ खिलोने ही टुटा करते थे
वोह खुशिया भी न जाने कैसी जाने कैसी खुशिया थी,
तितलियों को पकड़ने के लिए उच्चाला करते थे ।
पाओ मरकर ख़ुद बारिश के पानी मे,
अपने आप को भिगोया करते थे ।
अब तो एक आंसू भी रुसवा कर जाता है,
बचपन मे तो दिल खोलकर रोया करते थे ।
आज भी याद आता है वो यारो की महफ़िल ,
वो मुस्कुराते पल , वो मुस्कुराता हुआ कल
कभी ज़िन्दगी गुज़रती थी हँसाने हँसाने में ,
आज वक्त गुजरता है रूठने मानाने में
कभी वो हमको समझा करते थे ,कभी हम उनको समझा करते थे
अज वक्त निकलता है एक दुसरे कमी निकलने मे